Saturday 26 March 2016

एएमयू स्थापना से ही है एक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाः हंसराज

CHAMAN SHARMA
अलीगढ़:एएमयू स्टूडैन्ट्स एक्शन कमैटी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए पूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री और कर्नाटक व केरल के पूर्व राज्यपाल डाॅ. हंसराज भारद्वाज ने कहा कि भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों के शैक्षिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिये विशेष कानूनी दर्जा दिया है और यह संस्था अपनी स्थापना से ही एक अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था रही है।

उन्होंने कहा कि वह इस संस्था के इतिहास और उसके स्वरूप के साथ साथ इसके योगदान से भी भलीभांति परिचित हैं और उनका यह विश्वास है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज, आॅक्सफोर्ड और हार्वड से भी महान संस्था है।
हंसराज भारद्वाज ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को परामर्श दिया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इस केस के लिये पूरी तैयारी के साथ पैरवी करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि उन्हें यह माूलम है कि बहुत से मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय बदले हैं और कभी कभी सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के विपरीत केन्द्र सरकार ने नये कानून बनाकर फैसले को बदला है।
उन्होंने कहा कि वह लगातार 16 वर्ष तक देश के कानून मंत्री रह चुके हैं और उन्हें यह मालूम है कि अजीज बाशा का केस सुप्रीम कोर्ट का एक पक्षीय निर्णय था जिसमें अमुवि को पार्टी नहीं बनाया गया।
उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली के लिये स्वयं पहल करे क्योंकि शिक्षा और संस्कृति की रक्षा करना केन्द्रीय सरकार का संवैधानिक दायित्व है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए उच्चतम न्यायालय के वकील और सांसद केटीएस तुलसी ने कहा कि निःसंदेह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक अल्पसंख्यक शिक्षा संस्था है और जो लोग इस का विरोध कर रहे हैं वह भारतीय संविधान में अल्पसख्यकों को दिये गये अधिकारों का खुला उल्लघन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज एक शक्तिशाली अल्पसंख्यक समाज है और अल्पसंख्यक स्वरूप का मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है। उन्होंने कहा कि हरियाणा और पंजाब में नदी के पानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जो विवाद था उसे संसद ने एक्ट के द्वारा हल किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संसद को कानून बनाने और उच्चतम न्यायालय को उसकी व्याख्या करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि लोकतन्त्र में संसद ही सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट विवि के पक्ष में निर्णय देगी।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति लेफ्टिीनैन्ट जनरल जमीर उद्दीन शाह ने कहा कि अमुवि के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली की कानूनी लड़ाई में सिर्फ मुसलमान ही यह कानूनी लड़ाई नहीं लड़ रहे बल्कि सभी धर्म और समुदाय के लोग इस लड़ाई में शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि वह चार वर्षों से इस कानूनी लड़ाई के लिये निरंतर प्रयासरत हैं। इस विषय पर शोध कर रहे हैं और उन लोगों से भी सम्पर्क साधे हुए हैं जो इस बारे में ज्यादा नहीं जानते।
जनरल शाह ने कहा कि एक शक्तिशाली व्यक्ति ही साहसी निर्णय ले सकता है और उन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर पूरा भरोसा है कि वह इस मामले में भी साहसी निर्णय लेने के लिये पूरी तरह सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि सच्चर कमेटी और रंगानाथन कमैटी ने भारतीय मुसलमानों को सबसे पिछड़ा माना है।
कुलपति जनरल शाह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में इस कानूनी लड़ाई के लिये बहुत ही योग्य वकीलों को रखा गया है और उन्होंने अलीगढ़ बिरादरी से आग्रह किया है कि वह इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट पर ही आस्था रखें और इस मामले को सड़कों पर न ले जायें। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन सभी धर्मों के ललोगों के साथ व्यतीत किया है और उन्हें विश्वास है कि हमें सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त होगा।
सहकुलपति ब्रिगेडियर एस अहमद अली ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने टीएमए पाई और सैंट स्टीफन केस में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संसद कानून बना सकती है तो उन्हें उसमें संशोधन का अधिकार भी प्राप्त है। केन्द्र सरकार अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थायें बना सकती है और देश में आज भी सौ से अधिक शिक्षा संस्थायें अल्पसंख्यकों के हैं जिन्हें सरकार सहायता भी देती है। उन्होंने कहा कि हमें देश की न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।
सीनियर पत्रकार कुरबान अली ने कहा कि 1875 से 1965 तक अल्पसंख्यक मामले पर कोई विवाद नहीं था। 1965 में करीम भाई छागला ने इस संस्था का मूल स्वरूप बदल दिया और तभी से यह मामला अल्पसंख्यकों के अधिकार से जुड़ गया। उन्होंने कहा कि स्वयं अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण अडवाणी अल्पसंख्यक स्वरूप के पक्ष में थे और 1977 के चुनाव घोषणा पत्र में भारतीय जनता पार्टी, सीपीआई और सीपीएम भी इसके पक्ष में थी। उन्होंने कहा कि भाजपा के उपाध्यक्ष श्री रामजेठमलानी और सुब्रामनियम स्वामी ने भी संसद में अल्पसंख्यक स्वरूप के पक्ष में आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि हमारे देश में संसद आज भी सुप्रीम है।

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